वह गा रही है अपने अंचल का गीत गीत में गूँज रहे हैं : स्पंदित पेड़ मिट्टी की महक पानी की मिठास वह गा रही है मगनमन ऐसे जैसे भेंटी हो बहुत दिनों बाद अपनी माँ से।
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ